मैं और बज़्मे-मै,[1] से यूं तश्नाकाम[2] आऊं!
गर मैंने की थी तौबा, साक़ी को क्या हुआ था?

है एक तीर, जिसमें दोनों छिदे पड़ें हैं
वो दिन गए, कि अपना दिल से जिगर जुदा था

दरमान्दगी[3] में 'ग़ालिब', कुछ बन पड़े तो जानूं
जब रिश्ता बेगिरह[4] था, नाख़ून गिरह-कुशा[5] था

शब्दार्थ:
  1. शराब की महफ़िल
  2. प्यासा
  3. दुख
  4. बिना गांठ के
  5. गांठ खोलनेवाला
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